कबीरा कहे हे जग अंधा* *अंधी जैसी गाय* *बछडा था सो मर गया* *झुठी चाम चटाय*

*कबीरा कहे हे जग अंधा*
*अंधी जैसी गाय*
*बछडा था सो मर गया*
*झुठी चाम चटाय*


अर्थ-
एक अंधी गाय थी । उसका बछड़ा मर गया । मालिक ने 
उसके चमड़े में भूसा भरकर बछड़े का पुतला तैयार कर दिया । गाय अंधी थी , वह बछड़े को तो देख नही पर रही थी । पहले की तरह उस पुतले को चाटकर दूध देने लगी । 


.....कबीर दास जी कहते हैं,  यह संसार भी उस अंधी गाय की तरह है । वह किसी देवता या भगवान को तो देखा नहीं है फिर भी ब्राह्मण, देवता का पत्थर का पुतला दिखा दिखा कर सदियों से  शोषण कर रहा है ।


कबीरदास जी का आशय यह समझाना है कि देवता के नाम पर दान-दक्षिणा बंद करो, *इसी अंधी गाय की तरह पुतले का प्रेम, भय और लालच दिखा कर सदियों से बहुजन समाज का शोषण होता रहा है ।*