चांद की सतह छूने से सिर्फ 2.1 किमी पहले चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का इसरो से संपर्क टूट गया था। इसके बावजूद मिशन 99.5% सफल है। लैंडर से संपर्क साधने की कोशिशें जारी हैं।
वहीं, चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सही कक्षा में चांद के चक्कर लगा रहा है। यह अगले 1 साल तक अपने 8 पेलोड के जरिए चांद के वातावरण और सतह के बारे में जानकारी इसरो को भेजता रहेगा। अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी विक्रम की लैंडिंग की पुष्टि न होने के बावजूद इस मिशन को भारत की एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं। इसरो अगले 10 साल में छह बड़े मिशन भेजेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे भारत के स्पेस सेक्टर में निवेश और ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में इसरो की हिस्सेदारी बढ़ेगी।
इसरो के मिशन में 80% हार्डवेयर निजी क्षेत्र में बनता है
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के रोसेटा मिशन के सदस्य रहे डॉ. चैतन्य गिरी बताते हैं कि इसरो की उपलब्धियों ने भारत के बड़े उद्योगपतियों का ध्यान स्पेस सेक्टर की ओर खींचा है। कई साल तक गिनी-चुनी इंडस्ट्रियां जैसे- एलएंडटी, गोदरेज एरोस्पेस ही इसरो के साथ काम करती थीं। अब नई इंडस्ट्रियों की भी रुचि इसमें बढ़ रही है। चंद्रयान-2 की सफलता के बाद यह और बढ़ेगी। इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक रहे डॉ. पीएस गोयल कहते हैं कि इसरो के मिशन के लिए 80% हार्डवेयर इंडस्ट्रियों में ही बनता है। स्पेस प्रोग्राम बढ़ेंगे, तो इंडस्ट्रियों की भागीदारी भी बढ़ेगी।
स्पेस सेक्टर में निवेश और रोजगार बढ़ेगा
डॉ. चैतन्य बताते हैं कि भारत में सैटेलाइट का मास प्रोडक्शन आने वाले सालों में बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। सरकार प्राइवेट सेक्टर को भी इसमें इनवाइट कर रही है। प्राइवेट सेक्टर को जब भरोसा होगा कि सरकार, साइंटिस्ट और इंजीनियर्स उनके साथ हैं, सरकार की अंतरिक्ष के प्रति नीतियां उनके अनुकूल हैं, तभी वे निवेश बढ़ाएंगे। यह भारत में हो भी रहा है। ऐसा हुआ तो आगे प्राइवेट इंडस्ट्रियां इसरो के मिशन में भागीदारी के साथ अपने-अपने स्पेस प्रोग्राम भी लॉन्च कर पाएंगी। इससे भारत में स्पेस सेक्टर में निवेश बढ़ेगा। कई नई नौकरियां मिलेंगी। सरकार और इंडस्ट्रियों को एक बड़ा हिस्सा इसमें प्रॉफिट के रूप में भी मिलेगा। पीएस गोयल भी यह मानते हैं कि भारत में आने वाले समय में इंडस्ट्रियां सैटेलाइट भी बनाएंगी और लॉन्च व्हीकल भी तैयार करेंगी। अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में प्राइवेट सेक्टर को स्पेस प्रोग्राम के लिए छूट मिली हुई है। इसमें चीन भी शामिल है। इन देशों में प्राइवेट कंपनियां अपना रॉकेट और सैटेलाइट तैयार कर सकती हैं और लॉन्च भी करती हैं।